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Showing posts from March, 2018

भिटौली ( Bhitauli Tradition )

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 भिटौली (  रंगीलो   उत्तराखण्ड ) उत्तराखण्ड राज्य में कुमाऊं-गढवाल मण्डल के पहाड़ी क्षेत्र अपनी रंगीली लोक परम्पराओं और त्यौहारों के लिये शताब्दियों से प्रसिद्ध हैं।यहाँ प्रचलित कई ऐसे तीज-त्यौहार हैं जो केवल उत्तराखण्ड में ही मनाये जाते है। वही इसे बचाए रखने का बीड़ा उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र और यहाँ पर रहने वाले पहाड़ी लोगों ने उठाया है इन्होने आज भी अपनी परंपरा और रीति- रिवाजों को जिन्दा रखा है। उत्तराखण्ड की ऐसी ही एक विशिष्ट परम्परा है “भिटौली”। उत्तराखण्ड में चैत का पूरा महीना भिटोली के महीने के तौर पर मनाया जाता है| स्व० गोपाल बाबू गोस्वामी जी के इस गाने मे भिटोला महीना के बारे मे वर्णन है.  “बाटी लागी बारात चेली ,बैठ  डोली मे,  बाबु की लाडली चेली,बैठ डोली मे  तेरो बाजू भिटोयी आला, बैठ डोली मे ” भिटौली  का शाब्दिक अर्थ है – भेंट (मुलाकात) करना। प्रत्येक विवाहित लड़की के मायके वाले (भाई, माता-पिता या अन्य परिजन) चैत्र के महीने में उसके ससुराल जाकर विवाहिता से मुलाकात करते हैं।  इस अवसर पर वह अपनी लड़की के लिये घर में बने व्यंजन जैसे खजूर (आटे + दूध +

फूल देई ( Phool Dei )

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  फूल संक्रांति  ( रंगीलो उत्तराखण्ड ) उत्तराखण्ड राज्य दुनिया भर में  देवभूमि   के नाम से जाना जाता है, इस सुरम्य प्रदेश की एक और खासियत यह है कि यहां के निवासी बहुत ही त्यौहार प्रेमी होते हैं। उत्तराखण्ड राज्य के पहाड़ी क्षेत्र अपनी विशिष्ट लोक परम्पराओं और त्यौहारों के लिये प्रसिद्ध हैं।  यहाँ प्रचलित कई ऐसे -त्यौहार हैं, जो सिर्फ इस राज्य में ही मनाये जाते हैं।  कृषि से सम्बन्धित त्यौहार हैं हरेला और फूलदेई।  फूलदेई प्रकृति से जुड़ा पर्व है। हिन्दू परंपरा के अनुसार चैत्र माह से नए साल की शुरुआत होती है। उत्तराखण्ड में फूलदेई  चैत महीने के प्रथम दिन  मनाया जाता है, जो बसन्त ऋतु के स्वागत का त्यौहार है। इस दिन छोटे बच्चे सुबह की पहली किरण के फूटते ही बच्चे आसपास के पेड़ों और जंगल से फूल जुटाकर लाने लगते हैं। चैत्र महीने के समय चारों ओर छाई हरियाली और नाना प्रकार के खिले फूल प्रकृति के यौवन में चार चांद लगाते हैं। बच्चे वहां से प्योली, बुरांस, बासिंग आदि जंगली फूलो के अलावा आडू, खुबानी, पुलम के फूलों को चुनकर लाते हैं और एक थाली या रिंगाल की टोकरी में