‘Aipan’ Traditional Folk Art | ऐपण उत्तराखण्ड की लोक कला | Rangilo Uttar...
हमारी उत्तराखंडी संस्कृति में विभिन्न प्रकार की लोक कलाएं मौजूद है। उन्ही में से एक प्रमुख कला “ऐपण” भी है। उत्तराखंड की स्थानीय चित्रकला की शैली को ऐपण के रूप में जाना जाता है। मुख्यतया ऐपण उत्तराखंड में शुभ अवसरों पर बनायीं जाने वाली रंगोली है। ऐपण कई तरह के डिजायनों से पूर्ण किया जाता है। उंगलियों और हथेलियों का प्रयोग करके अतीत की घटनाओं, शैलियों, अपने भाव विचारों और सौंदर्य मूल्यों पर विचार कर इन्हें संरक्षित किया जाता है। यही वजह है कि यहां के लोगों ने सदियों पुरानी लोक कलाओं को आज भी जिंदा रहा है.
कुमाउनी ऐपण विधा के मूल संदर्भ पुराणों में मिलते हैं। उदाहरण के लिए विवाह के अवसर पर प्रयुक्त की जाने वाली धूलिअर्घ्य चौकी का पूरा विवरण शिव पुराण और विष्णु पुराण में अनुग्रह यंत्र के रूप में मिलता है | ऐपण यानि अल्पना एक ऐसी लोक कला, जिसका इस्तेमाल कुमाऊं में सदियों से जारी है. यहां ऐपण कलात्मक अभिव्यक्ति का भी प्रतीक है. इस लोक कला को अलग-अलग धार्मिक अवसरों के मुताबिक चित्रित किया जाता है | घर की सजावट में ही लोक कला सबसे पहले देखने को मिलती है। दशहरा, दीपावली, नामकरण, जनेऊ आदि शुभ अवसरों पर महिलाएँ घर में ऐंपण (अल्पना) बनाती है।
ऐपण (Aipan) बनाने की विधि:-
गाँव घरो में तो आज भी हाथ से ऐपण तैयार कियें जातें है। ऐपण बनाने के लिए घर, ऑंगन या सीढ़ियों को गेरू से लीपा जाता है। चावल को भिगोकर उसे पीसा जाता है जिसे विस्वार कहते है। उसके लेप से आकर्षक चित्र बनाए जाते हैं, जिसको लिख थाप भी कहते हैं। विभिन्न अवसरों पर नामकरण चौकी, सूर्य चौकी, स्नान चौकी, जन्मदिन चौकी, यज्ञोपवीत चौकी, विवाह चौकी, धूमिलअर्ध्य चौकी, वर चौकी, आचार्य चौकी, अष्टदल कमल, स्वास्तिक पीठ, विष्णु पीठ, शिव पीठ, शिव शक्ति पीठ, सरस्वती पीठ आदि परम्परागत गाँव की महिलाएँ स्वयं बनाती है |
दीवारों एवं द्वार पर ऐपण के रूप में पांच, सात अथवा नौ के समूह में अंगुलियों से खड़ी लकीरें बनाई जाती हैं, जिन्हें वसुधारा कहा जाता है। घर के देवस्थान में बनी वेदी की लिपाई कर उसे सुंदर ऐपण-आलेखनों से सजाया जाता है। नवागत शिशु को सूर्य दर्शन कराने पर सूर्य चौकी, छठी एवं नामकरण संस्कार पर लकड़ी की चौकी को लाल मिट्टी से लीप कर से विश्वार से ऐपण बनाकर ‘जनमबार चौकी’ बनाई जाती है। इसी तरह उपनयन, विवाह और आखिरी अंतिम संस्कार में भी संस्कार करने की भूमि को पवित्र करने के लिए लिपाई और आलेखन किया जाता है।रक्षाबंधन एवं उपनयन संस्कार पर ‘उपनयन चौकी’ बनाने का प्राविधान है। विवाह पर पूजा स्थल में वर अथवा वधू के माता-पिता यानी यजमान दंपति के बैठने के लिए ‘दोहरी चौकी’, कन्या पक्ष के आंगन में वर के स्वागत के लिए ‘धूलिअर्घ्य चौकी’, देव पूजन एवं गणेश पूजन के लिए ‘विवाह चौकी’, कन्यादान के लिए बेटी के वस्त्राभूषण रखने के लिए ‘कन्यादान चौकी’, तथा वर एवं आचार्य के लिए पीले रंग की चौकी में विभिन्न रंगों के आलेखन होते हैं। इस मौके पर चौकी को कच्ची हल्दी से रंगकर रोली (पिठ्यां) के रंग से महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती, गणेश, सूर्य, चंद्रमा, सोलह मात्रिका देवियों, पांच बेल-बूटे एवं हिमालय के प्रतीकों से युक्त मातृका चौकी भी बनाई जाती है। बेल-बूटे, बरगद का पेड़, अष्टकमल, दो तोते तथा बीच में राधा कृष्ण, सूर्य, चंद्रमा, शिव के प्रतीक सांप व 15 से 25 कर बिंदुओं (भित्ति चित्रों) से युक्त ज्योति पट्टा, बनाया जाता है। दीपावली पर शुभ लक्ष्मी चौकी तथा घर के बाहर से लेकर प्रत्येक द्वार से होते हुए हर कमरे और खासकर मंदिर तक माता लक्ष्मी के पग बनाए जाते हैं। गोवर्धन पूजा पर ‘गोवर्धन पट्टा’ तथा कृष्ण जन्माष्टमी पर ‘जन्माष्टमी पट्टे’ बनाए जाते हैं। नवरात्र में ‘नवदुर्गा चौकी’ तथा कलश स्थापना के लिए नौ देवियों एवं देवताओं की सुंदर आकृतियों युक्त ‘दुर्गा थापा’ बनाया जाता है। इसके अलावा भी महिलाएं प्रत्येक सोमवार को शिव व्रत के लिए ‘शिव-शक्ति चौकी’ बनाती हैं। सावन में पार्थिव पूजन के लिए ‘शिवपीठ चौकी’ तथा व्रत में पूजा-स्थल पर रखने के लिए कपड़े पर ‘शिवार्चन चौकी’ बनाई जाती है। वहीं इतिहासकारों के अनुसार कुमाउनी लोक कला ऐपण एवं भित्ति चित्रों में ईसा से करीब दो सहस्त्राब्दि पूर्व कुमाऊं के मूलवासी रहे हूण एवं शकों की संस्कृति के साथ ही राजस्थान, महाराष्ट्र, राजस्थान, बिहार एवं तिब्बत के भी कुछ प्रभाव दिखते हैं। साथ ही इस कला में यहां के लोगों की कलात्मक, आध्यात्मिक व सांस्कृतिक अभिव्यक्ति भी होती है। वीणा की लहरों, फूल मालाओं, सितारों, बेल-बूटों व स्वास्तिक चिन्ह में समरूपता से इनमें तांत्रिक प्रभाव भी दृष्टिगोचर होते हैं। साथ ही अलग-अलग प्रकार के ऐपण तैयार करते समय के लिए अनेक मंत्रों का भी प्रयोग किया जाता है, तभी ऐपण आलेखन का अभीष्ट पूर्ण होता है।
इस लोक कला का सिलसिला सदियों से चला आ रहा है, लेकिन इस संस्कृति से जुड़ी महिलाओं की आर्थिक स्थिति व बढ़ावा न मिलने की वजह से यह संस्कृति अब विलुप्त होते जा रहा है। हाल में पूर्व सीएम हरीश रावत ने इन लोक कला पर इनिसिएटिव लेते हुए संस्कृति विभाग को निर्देश दिए कि विलुप्त होती ऐपण को आगे बढ़ाने के लिए किए जाने वाले प्रयासों के साथ प्रचार- प्रसार किए जाएं। इसी क्रम में अब संस्कृति विभाग ऐपण से जुड़े संस्थाओं व महिलाओ सूचीबद्ध करने की तैयारी कर रही है | ऐपण शिल्प कला सहित हस्त कला को प्रोत्साहित करने के लिये राज्य में ऐपण कला परिषद का गठन करने का निर्णय शासन द्वारा लिया गया हैं यह बात मुख्यमंत्री हरीश रावत ने डीनापानी में मैसर्स अल्मोड़ा ऐपण शिल्पकला स्वायत्त संस्था के चेली ऐपण के उद्घाटन किया |
धन्यवाद
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