Nainital | City Of Lakes | Rangilo Uttarakhand | रंगीलो उत्तराखण्ड



नैनीताल भारत के उत्तराखण्ड राज्य का एक प्रमुख पर्यटन नगर है। यह नैनीताल जिले का मुख्यालय भी है। कुमाऊँ क्षेत्र में नैनीताल जिले का विशेष महत्व है। देश के प्रमुख क्षेत्रों में नैनीताल की गणना होती है। यह 'छखाता' परगने में आता है। 'छखाता' नाम 'षष्टिखात' से बना है। 'षष्टिखात' का तात्पर्य साठ तालों से है। इस अंचल में पहले साठ मनोरम ताल थे। इसीलिए इस क्षेत्र को 'षष्टिखात' कहा जाता था। आज इस अंचल को 'छखाता' नाम से अधिक जाना जाता है। आज भी नैनीताल जिले में सबसे अधिक ताल हैं। इसे भारत का लेक डिस्ट्रिक्ट कहा जाता है, क्योंकि यह पूरी जगह झीलों से घिरी हुई है। 'नैनी' शब्द का अर्थ है आँखें और 'ताल' का अर्थ है झील। झीलों का शहर नैनीताल उत्तराखंड का प्रसिद्ध पर्यटन स्‍थल है। बर्फ़ से ढ़के पहाड़ों के बीच बसा यह स्‍थान झीलों से घिरा हुआ है। इनमें से सबसे प्रमुख झील नैनी झील है जिसके नाम पर इस जगह का नाम नैनीताल पड़ा है। इसलिए इसे झीलों का शहर भी कहा जाता है। नैनीताल को जिधर से देखा जाए, यह बेहद ख़ूबसूरत है।

नैनीताल में कभी साठ मनोरम ताल थे | वैसे आज भी नैनीताल जिले में सबसे अधिक ताल है इसलिए इसे झीलों का शहर कहा जाता है |  तीनो ओर से घने घने वृक्षों की छाया में ऊँचे पहाड़ो की तलहटी में नैनीताल की लम्बाई डेढ़ किमी तो चौड़ाई लगभग आधा किमी और गहराई लगभग 150 मीटर आंकी गयी है | नैनीताल के जल की विशेषता यह है कि इस ताल में सम्पूर्ण पर्वतमाला और वृक्षों की छाया स्पष्ट दिखाई देती है | दिन में आकाश में छाए हुए बादलो की छाँव में यह तालाब बहुत सुंदर प्रतीत होता है तो किसी पूर्णिमा की रात चाँद-तारो से सजी रात ताल के पानी में तैरती बत्तखे , झिलमिलाती रंगीन बोट बहुत सुंदर दृश्य उत्पन्न करती है | 

इस ताल का पानी गर्मियों में हरा , बरसात में मटमैला और सर्दियों में हल्का नीला हो जाता है | नैनी झील के उत्तरी किनारे पर नैना देवी मन्दिर स्थित है | 1880 में भूस्खलन के दौरान यह मन्दिर नष्ट हो गया था बाद में इसे दोबारा बनाया गया | यहा सती के शक्ति रूप की पूजा की जाती है | मन्दिर में दो नेत्र है जो नैना देवी को दर्शाते है | कहा जाता है कि जब शिव सती की मृत देह को लेकर कैलाश पर्वत जा रहे थे तब जहा जहा उनके शरीर के अंग गिरे , वही शक्तिपीठो की स्थापना हुयी | नैनी झील के स्थान पर देवी सती के नेत्र गिरे थे | नयनो की अश्रुधारा ने ताल का  रूप ले लिया | तब से यहा शिवपत्नी नंदा (पार्वती) की पूजा नैना देवी के रूप में होती है | माता नैना देवी के मेले के अवसर पर तो नैनीताल में बहुत भीड़ रहती है |

यहाँ यह उल्लेखनीय है कि समस्त गढवाल-कुमाऊँ अंचल में नंदा देवी की ही पूजा-अर्चना की जाती है | प्रतिवर्ष नंदा अष्टमी के दिन नंदा पार्वती की विशेष पूजा होती है | नंदा के मायके से ससुराल भेजने के लिए भी नंदा जात का आयोजन होता है | एक अन्य श्रुति के अनुसार गढवाल और कुमाऊँ के राजाओ को भी इष्ट देवी नंदा देवी रही है | एक राजकुमारी नंदा को एक देवी के रूप में पूजा जाता है | कहा जाता है कि जब अत्री ,पुलस्त्य ऋषि को नैनीताल में कही पानी नही मिला तो उन्होंने गड्ढा खोदा और मानसरोवर झील से पानी लाकर उसमे भरा | इस झील में डुबकी लगाने से मानसरोवर जैसे पूण्य फल का विश्वास श्रुधालुओ को है | कुमाऊँ अंचल में मुक्तेश्वर की घाटी अपने सौन्दर्य के लिए विख्यात है | देश-विदेश के पर्यटक यहा गर्मियों में अधिक संख्या में आते है |

पूर्व में त्रि-सरोवर के नाम से नाम से पहचाने जाने वाले इस शहर के बारे में यह कहने में अतिशयोक्ति नहीं होगी कि कुदरत ने इस क्षेत्र को बेशुमार प्राकृतिक सौन्दर्य प्रदान करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी है। जिसके फलस्वरूप लगभग दस स्क्वायर कि.मी. क्षेत्र में फैले दर्जन भर रमणीक पर्यटन स्थल हैं जो पर्यटकों का मन बरबस ही मोह लेते हैं। इन पर्यटन स्थलों में राजभवन, गोल्फ कोर्स, स्नोव्यू, नयनापीक, टिफिन टाप, केव गार्डन, नैनी झील, नयना देवी मंदिर, हनुमानगढ़ी मंदिर, लैण्ड्स इंड तथा लडि़या कांठा आदि का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।

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