Almora - Cultural City of Uttarakhand | अल्मोड़ा - उत्तराखण्ड का सांस्कृतिक नगर | Rang...
अल्मोड़ा भारतीय राज्य उत्तराखण्ड का महत्वपूर्ण नगर है। यह अल्मोड़ा जिला का मुख्यालय है। अल्मोड़ा अपनी आकर्षक सुंदरता, हिमालय के मनोरम दृश्य, समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, अद्वितीय हस्तशिल्प और स्वादिष्ट व्यंजनों के लिए प्रसिद्ध है। अल्मोड़ा का सुरम्य परिदृश्य हर साल सैकड़ों पर्यटकों को आकर्षित करता है क्योंकि यह कुमाऊं क्षेत्र के व्यवसाय केंद्रों में से एक है।
पौराणिक सन्दर्भ
स्कन्दपुराण के मानसखंड में कहा गया है कि कौशिका (कोशी) और शाल्मली (सुयाल) नदी के बीच में एक पावन पर्वत स्थित है। यह पर्वत और कोई पर्वत न होकर अल्मोड़ा नगर का पर्वत है। यह कहा जाता है कि इस पर्वत पर विष्णु का निवास था। कुछ विद्वानों का यह भी मानना है कि विष्णु का कूर्मावतार इसी पर्वत पर हुआ था।
एक कथा के अनुसार यह कहा जाता है कि अल्मोड़ा की कौशिका देवी ने शुंभ और निशुंभ नामक दानवों को इसी क्षेत्र में मारा था। कहानियाँ अनेक हैं, परन्तु एक बात पूर्णत: सत्य है कि प्राचनी युग से ही इस स्थान का धार्मिक, भौगोलिक और ऐतिहासिक महत्व रहा है।
इतिहास
आज के इतिहासकारों की मान्यता है कि सन् 1563 ई. में चंदवंश के राजा बालो कल्याणचंद ने आलमनगर के नाम से इस नगर को बसाया था। चंदवंश की पहले राजधानी चम्पावत थी। कल्याणचंद ने इस स्थान के महत्व को भली-भाँति समझा। तभी उन्होंने चम्पावत से बदलकर इस आलमनगर (अल्मोड़ा) को अपनी राजधानी बनाया। सन् 1563 से लेकर 17 9 0 ई. तक अल्मोड़ा का धार्मिक भौगोलिक और ऐतिहासिक महत्व कई दिशाओं में अग्रणीय रहा। इसी बीच कई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक एवं राजनैतिक घटनाएँ भी घटीं। साहित्यिक एवं सांस्कृतिक दृष्टियों से भी अल्मोड़ा समस्त कुमाऊँ अंचल का प्रतिनिधित्व करता रहा।
सन् 1790 ई. से गोरखाओं का आक्रमण कुमाऊँ अंचल में होने लगा था। गोरखाओं ने कुमाऊँ तथा गढ़वाल पर आक्रमण ही नहीं किया बल्कि अपना राज्य भी स्थापित किया। सन् 1816 ई. में अंग्रेजो की मदद से गोरखा पराजित हुए और इस क्षेत्र में अंग्रेजों का राज्य स्थापित हो गया।
स्वतंत्रता की लड़ाई में भी अल्मोड़ा के विशेष योगदान रहा है। शिक्षा, कला एवं संस्कृति के उत्थान में अल्मोड़ा का विशेष हाथ रहा है। कुमाऊँनी संस्कृति की असली छाप अल्मोड़ा में ही मिलती है - अत: कुमाऊँ के सभी नगरों में अल्मोड़ा ही सभी दृष्टियों से बड़ा है।
प्रमुख पर्यटन स्थल
अल्मोड़ा के किले :
अल्मोड़ा नगर के पूर्वी छोर पर 'खगमरा' नामक किला है। कत्यूरी राजाओं ने इस नवीं शताब्दी में बनवाया था। दूसरा किला अल्मोड़ा नगर के मध्य में है। इस किले का नाम 'मल्लाताल' है। इसे कल्याणचन्द ने सन् 1563 ई. में बनवाया था। कहते हैं, उन्होंने इस नगर का नाम आलमनगर रखा था। वहीं चम्पावत से अपनी राजधानी बदलकर यहाँ लाये थे। आजकल इस किले में अल्मोड़ा जिले के मुख्यालय के कार्यलय हैं। तीसरा किला अल्मोड़ा छावनी में है, इस लालमण्डी किला कहा जाता है। अंग्रेजों ने जब गोरखाओं को पराजित किया था तो इसी किले पर सन् 1816 ई. में अपना झण्डा फहराया था। अपनी खुशी प्रकट करने हेतु उन्होंने इस किले का नाम तत्कालीन गवर्नर जनरल के नाम पर - 'फोर्ट मायरा' रखा था। परन्तु यह किला 'लालमण्डी किला' के नाम से अदिक जाना जाता है। इस किले में अल्मोड़ा के अनेक स्थलों के भव्य दर्शन होते हैं।
नन्दा देवी मन्दिर :
गढ़वाल कुमाऊँ की एक मात्र ईष्ट देवी भगवती नन्दा पार्वती है। नन्दा अष्टमी के दिन सम्पूर्मम पर्वतीय अंचल में नन्दा की विशेष पूजा होती है। नन्दा देवी की मूर्ती केले के पत्तों और केले के तनों से बनाई जाती है। नन्दा की सवारी भी निकाली जाती है। नन्दा अष्टमी भाद्रपद अर्थात् सितम्बर के महीने में आती है। यहाँ पर इस दिन बहुत बड़ा मेला लगता है। इस दिन दर्शनार्थी आकर पूजा करते हैं। मेले में झोड़ा, चाँचरी और छपेली आदि नृत्यों का भी सुन्दर आयोजन होता है। कुमाऊँ के कई अंचलों की लोकनृत्य की पार्टियाँ यहाँ आकर अपना-अपना कौशल दिखाती हैं, पर्यटक, पदारोही, सैलानी और साहित्य एवं कला प्रेमी इन्ही दिनों अधिकतर कुमाऊँ की संस्कृति तता वहाँ के जन-जीवन की वास्तविक जानकारी करने हेतु अल्मोड़ा पहुँचते हैं। अल्मोड़ा की नन्दा देवी के दर्शन करना अत्यन्त लाभकारी माना जाता है। अल्मोड़ा में नन्दा देवी के अलावा त्रिपुर सुन्दरी मन्दिर, रघुनाथ मन्दिर, महावीर मन्दिर, मुरली मनोहर मन्दिर, भैरवनाथ मन्दिर, बद्रीनाथ मन्दिर, रत्नेश्वर मन्दिर और उलका देवी मन्दिर प्रसिद्ध हैं।
कसार देवीमंदिर :
यह मुख्य नगर से आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर से हिमालय की ऊँची-ऊँची पर्वत श्रेणियों के दर्शन होते हैं। कसार देवी का मंदिर भी दुर्गा का ही मंदिर है। कहते हैं कि इस मंदिर की स्थापना ईसा के दो वर्ष पहले हो चुकी थी। इस मंदिर का धार्मिक महत्व बहुत अधिक आंका जाता है।
कालीमठ :
यह अल्मोड़ा से 5 कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित है। एक ओर हिमालय का रमणीय दृश्य दिखाई देता है और दूसरी ओर से अल्मोड़ा शहर की आकर्षक छवि मन को मोह लेती है। प्रकृतिप्रेमी, कला प्रेमी और पर्यटक इस स्थल पर घण्टों बैठकर प्रकृति का आनन्द लेते रहते हैं। गोरखों के समय राजपंडित ने मंत्र बल से लोहे की शलाकाओं को लोहभ कर दिया था। लोहभ के पहाड़ी के रूप में इसे देखा जा सकता है।
सिमतोला :
यह अल्मोड़ा नगर से 3 कि॰मी॰ की दूरी पर 'सिमतोला' का 'पिकनिक स्थल' सैलानियों का स्वर्ग है। प्रकृति के अनोखे दृश्यों को देखने के लिए हजारों पर्यटक इस स्थल पर आते-जाते रहते हैं।
मटेला:
मटेला का सुखद वातावरण सैलानियों के लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र है। यहाँ के बाग अत्यन्त सुन्दर हैं। 'पिकनिक' के लिए कई पर्यटक यहाँ अपने-अपने दलों के साथ आते हैं।
राजकीय संग्रहालय :
अल्मोड़ा में राजकीय संग्रहालय और कला-भवन भी है। कला प्रेमियों तथा इतिहास एवं पुरातत्व के जिज्ञासुओं के लिए यहाँ पर्याप्त सामाग्री है।
ब्राइट एण्ड कार्नर :
यह अल्मोड़ा के बस स्टेशन से केवल 2 कि॰मी॰ कब हूरी पर एक अद्भुत स्थल है। इस स्थान से उगते हुए और डूबते हुए सूर्य का दृश्य देखने हजारों मील से प्रकृति प्रेमी आते रहते हैं। इंगलैण्ड में 'ब्राइट बीच' है। उस 'बीच' से भी डूबते और उगते सूरज का दृश्य चमत्कारी प्रभाव डालने वाला होता है। उसी 'बीच' के नाम पर अल्मोड़ा के इस 'कोने' का नाम रखा गया है।
कटारमल :
कटारमल का सूर्य मन्दिर अपनी बनावट के लिए विख्यात है। महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने इस मन्दिर की भूरि-भूरि प्रशंसा की। उनका मानना है कि यहाँ पर समस्त हिमालय के देवतागण एकत्र होकर पूजा अर्चना करते रहै हैं। उन्होंने यहाँ की मूर्तियों की कला की प्रशंसा की है।
कटारमल के मन्दिर में सूर्य पद्मासन लगाकर बैठे हुए हैं। यह मूर्ति एक मीटर से अधिक लम्बी और पौन मीटर चौड़ी भूरे रंग के पत्थर में बनाई गई है। यह मूर्ती बारहवीं शताब्दी की बतायी जाती है। कोर्णाक के सूर्य मन्दिर के बाद कटारमल का यह सूर्य मन्दिर दर्शनीय है। कोर्णाक के सूर्य मन्दिर के बाहर जो झलक है, वह कटारमल मन्दिर में आंशिक रूप में दिखाई देती है।
कटारमल के सूर्य मन्दिर तक पहुँचने के लिए अल्मोड़ा से रानीखेत मोटरमार्ग के रास्ते से जाना होता है। अल्मोड़ा से 14 कि॰मी॰ जाने के बाद 3 कि॰मी॰ पैदल चलना पड़ता है। मन्दिर 1554 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। अल्मोड़ा से कटारमल मंदिर 17 कि॰मी॰ की निकलकर जाता है।
अल्मोड़ा सुन्दर आकर्षक और अद्भुत है। इसीलिए नृत्य-सम्राट उदयशंकर को यह स्थान इतना भाया था कि उन्होंने अपनी 'नृत्यशाला' यहीं बनायी थी। उनके कई विश्वविख्यात नृत्यकार शिशुओं ने अल्मोड़ा की रमणीय धरती में ही नृत्य कला की प्रथम शिक्षा ग्रहण की थी। उदयशंकर की तरह विश्वकवि रविन्द्रनाथ टैगोर को भी अल्मोड़ा पसन्द था। वे यहाँ कई दिन तक रहे। विश्व में वेदान्त का शंखनाद करने वाले स्वामी विवेकानन्द अल्मोड़ा में आकर अत्याधिक प्रसन्न हुए थे। उन्हें इस स्थान में आत्मिक शान्ति मिली थी
धन्यवाद,
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